गुरुवार, 21 नवंबर 2024

अथर्ववेदोक्त ब्रह्म मुहूर्त और विष्णु पुराणोक्त ब्राह्म मुहूर्त दोनो अलग-अलग अवधारणा है।

अथर्ववेदोक्त ब्रह्म मुहूर्त और विष्णु पुराणोक्त ब्राह्म मुहूर्त दोनो अलग-अलग अवधारणा है।
यदि रात्रि बारह घण्टे की हो तो सूर्योदय से 96 मिनट से लेकर 48 मिनट तक का उनतीसवाँ मुहूर्त या रात्रि का चौदहवाँ मुहूर्त ब्रह्म मुहूर्त होता है।इस समय सन्ध्या करते हैं। फिर एक मुहूर्त गायत्री जप करके उदयीमान सूर्य को अर्घ्य प्रदान करते हैं।
मतलब सूर्योदय से डेड़ घण्टा पहले तो सन्ध्या चालू करना है तो, उसके पहले शोच, स्नान, योगासन आदि करने के लिए उठना तो पहले ही पड़ेगा।
इसलिए जागने के लिए विष्णु पुराण में ब्राह्म मुहूर्त बतलाया है। जो बारह घण्टे की रात्रि होने पर सूर्योदय से चार घण्टे पहले प्रारम्भ होता है और सूर्योदय से दो घण्टे पहले तक रहता है।

अर्थात 21 मार्च और 23 सितम्बर को सूर्योदय लगभग 06:28 बजे यानी लगभग साढ़े छः बजे होता है और दिन-रात लगभग बारह-बारह घण्टे के होते हैं तब रात में दो बजे उठना चाहिए। और पौने पाँच बजे सन्ध्या प्रारम्भ करना चाहिए।और पाँच बजकर चालीस मिनट से गायत्री जप प्रारम्भ करना चाहिए। तथा सूर्योदय के समय अर्घ्य देकर दान आदि करना चाहिए।

सोमवार, 11 नवंबर 2024

देव शयन और देव प्रबोधन

वर्षा ऋतु में जठराग्नि मन्द हो जाती है, व्यक्ति अधिक समय घर में गुजारता है, डिप्रेस्ड रहता है इसलिए बहुत से उत्सव - त्योहार बनाए गए। तला हुआ गरिष्ठ खाद्य ग्रहण करता है; इसलिए भोजन पूर्णतः नहीं पचता और पौषण नहीं मिलता। आलस्य वर्धन होता है। मन - इन्द्रियों का मन्द होना ही देव शयन है। 

हेमन्त ऋतु में जल जमाव समाप्त होने, कीचड़ सूखने, स्वच्छता बढ़ने से बेक्टिरिया वायरस कम होने और शीत बढ़ने से स्वास्थ्य सुधार होने लगता है। इससे सुशुप्तावस्था मे गये मन - इन्द्रियों का सक्रिय होना ही देव प्रबोधन है।
वेदों, ब्राह्मण ग्रन्थों - उपनिषदों में अन्तरात्मा, जीवात्मा, प्राण,  मन- इन्द्रियों, जठराग्नि आदि अध्यात्मिक (देह के अन्दर सक्रीय) संस्थानों को भी देव कहा गया है। तथा विष्णु, प्रभविष्णु (श्रीहरि), नारायण, हिरण्यगर्भ आदि को भी देव कहा गया है। तथा प्रजापति, इन्द्र, द्वादश आदित्य, अष्ट वसु तथा एकादश रुद्र को देवता कहा गया है। उक्त देवों में हिरण्यगर्भ ब्रह्मा के दिन अर्थ कल्प के अन्त में रात्रि होने पर जब हिरण्यगर्भ ब्रह्मा सो जाते हैं, तब प्रजापति अपने कारण हिरण्यगर्भ ब्रह्मा में लय हो जाते हैं और नैमित्तिक प्रलय हो जाने से ब्रह्माण्ड नष्ट हो जाता है।
अर्थात विष्णु, प्रभविष्णु श्री हरि (सवितृ), नारायण तो दूर हिरण्यगर्भ ब्रह्मा भी नहीं सोते हैं। तो उठने का प्रश्न ही नहीं।

शनिवार, 9 नवंबर 2024

नव सस्येष्टि होला (होली) और दीवाली (दीपावली) पर्व।

पूर्णिमा और अमावस्या को यज्ञ वेदी पर समिधा जमाकर अन्वाधान करते हैं।
अमावस्या और पूर्णिमा के दूसरे दिन (प्रतिपदा) को किया जाने वाला पाक्षिक यज्ञ इष्टि कहलाता है।

इष्टि यज्ञ का एक प्रकार है। मूलतः होली और दीवाली भी नव सस्येष्टि पर्व ही हैं।
हिरण्यकशिपु -प्रहलाद- सिंहिका (होलिका) से होली का कोई सम्बन्ध नहीं है।
इस पर्व का सही नाम होला था। (उम्बी-होला वाला होला) इसलिए आज भी उम्बी-होला सेंकते हैं। इस दिन जों, गेंहू चना आदि फसलों का हवन कर यज्ञ भाग वितरण होता था।

ऐसे ही दीपावली भी नव सस्येष्टि पर्व था, इसलिए इसमें गन्ना, ज्वार और धान (साल की धानी) का हवन होता है। और पितरों के लिए दीपदान करके उन्हें पितृलोक का मार्गदर्शन करते हैं। इसलिए आकाशदीप लगाते हैं।
रावण वध अमान्त फाल्गुन पूर्णिमान्त चैत्र कृष्ण चतुर्दशी और अमावस्या तिथि की सन्धि वेला में हुआ था। विजया दशमी (दशहरा) को नहीं।
श्रीरामचन्द्र जी चौदह वर्ष के वनवास उपरान्त चैत्र शुक्ल पञ्चमी को भरद्वाज आश्रम पहूँचे थे। दुसरे दिन चैत्र शुक्ल षष्ठी को नंदीग्राम में भरत जी से मिले। और उसके बाद अयोध्या पधारे थे। अमान्त आश्विन पूर्णिमान्त कार्तिक कृष्ण अमावस्या (दीपावली) को नहीं।
सर्वपितृ अमावस्या के बाद भी जो पितर बच जाते हैं, उन्हें यम द्वितीया के दिन तक एकत्र कर यमराज साथ ले जाते हैं।