धर्म पालन के तीन साधन प्रमुख है। 1 यज्ञ 2 योग या अष्टाङ्ग योग और 3 ज्ञान।
श्रीमद्भगवद्गीता में यज्ञ और योग को मिलाकर निष्काम कर्म योग, समत्व और ज्ञान को बुद्धि योग या ज्ञान योग कहा है।
ब्राह्मण ग्रन्थों में बतलाए गए और पूर्व मीमांसा में कहे गए यज्ञ के बिना समर्पण भाव या ईश्वर प्राणिधान सम्भव नहीं है। और वृत्ति निरोध हेतु अष्टाङ्ग योग के अतिरिक्त कोई मार्ग नहीं है। तथा वैदिक संहिताओं और उपनिषदों में उल्लेखित तत्वज्ञान और ऋत के ज्ञान के बिना मौक्ष सम्भव नही है।
धर्म धारणा के तीन मार्ग या पन्थ प्रमुख है। 1 ज्ञान मार्ग या श्रीमद्भगवद्गीतोक्त बुद्धियोग 2 निष्काम कर्मयोग और 3 ईश्वर प्राणिधान या आत्म समर्पण अथवा भक्ति भाव।
लेकिन तीनों मार्गों का मुख्य आधार तो यम अर्थात धर्म ही हैं। जिसके न्यूनतम सर्वमान्य यम पतञ्जली योग दर्शनोक्त पञ्च यम ही हैं और तीनों मार्गों के सर्वमान्य न्यूनतम नियम पतञ्जली योग दर्शनोक्त पञ्च नियम ही हैं। आगे धर्मशास्त्रोंक्त सभी धर्मलक्षण इन्ही यम नियमों में समाहित हैं, यह प्रमाणित किया जाएगा।
तीनों प्रमुख मार्गों - पन्थों के बहुत से सम्प्रदाय हैं। यथा ज्ञान मार्ग का अभेद वैदिक दर्शन, अद्वैत वेदान्त दर्शन, त्रेत दर्शश, ब्राह्मण ग्रन्थोंक्त कर्मकाण्ड आधारित पूर्व मीमांसा दर्शन, तत्त्वमीमांसा दर्शन (जिसके मुख्य दो भाग सांख्य कारिकाएँ और कपिल सांख्य दर्शन हैं), अष्टाङ्ग योग दर्शन (जिसके मुख्य दो भाग राजयोग और निष्काम कर्म योग हैं), तर्क शास्त्र (जिसका मुख्य भाग गोतम न्याय दर्शन है), कणाद का वैशेषिक दर्शन।
जबकि वेदों को प्रमाण न मानने वाले पन्थो --बौद्ध सर्वास्तिवाद , जैन अनेकान्तवाद, महायान बौद्ध नागार्जुन का शुन्यवाद, मैत्रेयनाथ का योगाचार या विज्ञानवाद, त्रिक दर्शन, पाञ्चरात्र मत, पाशुपत मत, शाक्त मत,कौल मत, कापालिक दर्शन, नास्तिक मत आदि के भी अपने - अपने नैतिक नियम अवश्य है। लेकिन उनमें धर्म तत्व की प्रधानता नहीं है। या एक-दो यम को ही धर्म मानते हैं।
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