रविवार, 28 जुलाई 2024

नियम पालन क्यों आवश्यक है?

हमने यदि जैविक क्रियाएँ - 
श्वसन, ग्रहण, उत्सर्जन और निद्रा का त्याग नहीं किया और अपनायें गए नियम को छोड़ दिया, स्थगित कर दिया तो आज तक किया गया व्रत भङ्ग हो गया।
व्रत भङ्ग स्वयमेव प्रायश्चित से निवारण होने वाला दोष (पापकर्म) है।
अनियमित जीवनचर्या तो महापाप है ही।

शुक्रवार, 26 जुलाई 2024

केवल ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद की वैदिक मन्त्र संहिताएँ ही परम प्रमाण हैं।

वेदार्थ कल्पद्रुम के आधार पर श्री पंडित विशुद्धानन्द मिश्र के आलेख - ⤵️
ऋग आदि मंत्र से इतर मंत्र के व्याख्यान रूप ब्राह्मण वेद पदाभिधेय नहीं है।

वेद के व्याख्यान रूप ब्राह्मणग्रन्थ वेद नहीं हो सकते' इस पक्ष का समर्थन करते हुये सनातन-धर्मियों के शिरोमणि वेदों में परिश्रम करने वाले सामश्री जी ने 'ऐतरेयालोचन' ग्रन्थ में लिखा है- "सायणाचार्य ने स्वकण्ठ से ही ब्राह्मणों को मन्त्रों का व्याख्यानरूप माना है जैसे कि - तैत्तिरीय संहिताभाष्य की भूमिका में ब्राह्मणों के, मन्त्रव्याख्यान रूप होने से, “आदि में मंत्र ही बने" इत्यादि । 

इसी प्रकार मीमांसा दर्शन में भी अनाग्नातेष्वम-त्रत्वम् इत्यादि (२।१।३४) सूत्र में महर्षि जैमिनी ने ऊह, प्रवर नामधेयों में मन्त्रत्व नहीं माना और कहा है कि मन्त्रों से सम्बन्ध रखने मात्र से ब्राह्मणों का मन्त्रत्व नहीं माना जा सकता । ईश्वर द्वारा उक्त न होने से, तथा पुरुषों के द्वारा रचित होने से ब्राह्मण ग्रन्थों का मन्त्रत्व नहीं कहा जा सकता ।

पौराणिकों के प्रमाणीभूत हरिवंशपुराण में भी 'ऋचो यजूंषि इत्यादि श्लोक में ऋगादि चारों वेदों का स्पष्ट वेदत्व कहा है ब्राह्मण ग्रन्थों का नहीं । इसी प्रकार स्वयं गोपथ ब्राह्मण में भी 'चत्वारो वा इमे वेदा' तथा महाभारत में 'त्रयीविद्यामित्यादि श्लोक में और 'विनियोक्तव्य- रूपश्च मंत्रों वेद चतुष्टये' श्लोक द्वारा वैदिक ग्रन्थ सर्वानुक्रमणी में भी विविध प्रकार के ऐसे शास्त्रीय प्रमाण हैं जिनमें ब्राह्मण ग्रन्थों को छोड़ कर केवल मन्त्र भाग को ही वेद कहा गया है। 

  उक्त आलेख के प्रकाश में ⤵️
यह कहा जा सकता है कि,
पुरुष सुक्त, (उत्तर नारायण सुक्त सहित), नासदीय सुक्त और  अस्यवामिय सुक्त और ,श्री सुक्त, लक्ष्मी सुक्त,और देवी सुक्त और शुक्लयजुर्वेद का एकतीसवां, बत्तीसवां और चालिसवाँ अध्याय (ईशावास्योपनिषद) ही मुख्य प्रमाण है। श्वेताश्वतरोपनिषद द्वितियक प्रमाण है और ब्राह्मण ग्रन्थों से निकले शेष केन, कठ, एतरेय, तैतरीय, प्रश्न, मण्डुक, माण्डुक्य, छान्दोग्य, बृहदारण्यक उपनिषद् तृतियक प्रमाण है। और इन्हीं के आधार पर तैयार पूर्व मीमांसा और उत्तर मीमांसा दर्शन भी स्वतः प्रमाण कोटि के ग्रन्थ हैं। लेकिन ये इसलिए प्रमाण है क्योंकि उक्त प्रमाणों के आधार पर तैयार है, और उक्त प्रमाणों को ही प्रमाण घोषित करते हैं। चतुर्थ प्रमाण है।

रामायण - महाभारत से निकले श्रीमद्भगवद्गीता आदि पञ्चम प्रमाण है, सांख्य कारिकाएँ, माण्डुक्य कारिकाएँ, कपिल सांख्य दर्शन और पतञ्जली योग दर्शन षष्ट प्रमाण है, गोतम न्याय दर्शन और कणाद वैशेषिक दर्शन सप्तम प्रमाण है। पुराणोक्त ब्रह्मविद्या सम्बन्धित वर्णन अष्टम प्रमाण है;क्योंकि, उत्तर मीमांसा दर्शन में इनके प्रमाणों को सन्दर्भित किया गया है।

गुरुवार, 4 जुलाई 2024

धर्म या यम।

धर्म को यम भी कहा जाता है। यमराज को धर्मराज भी कहते पढ़ा सुना ही होगा।
धर्म पालन के तीन साधन प्रमुख है। 1 यज्ञ 2 योग या अष्टाङ्ग योग और 3 ज्ञान।
श्रीमद्भगवद्गीता में यज्ञ और योग को मिलाकर निष्काम कर्म योग, समत्व और ज्ञान को बुद्धि योग या ज्ञान योग कहा है।
ब्राह्मण ग्रन्थों में बतलाए गए और पूर्व मीमांसा में कहे गए यज्ञ के बिना समर्पण भाव या ईश्वर प्राणिधान सम्भव नहीं है। और वृत्ति निरोध हेतु अष्टाङ्ग योग के अतिरिक्त कोई मार्ग नहीं है। तथा वैदिक संहिताओं और उपनिषदों में उल्लेखित तत्वज्ञान और ऋत के ज्ञान के बिना मौक्ष सम्भव नही है।



धर्म धारणा के तीन मार्ग या पन्थ प्रमुख है। 1 ज्ञान मार्ग या श्रीमद्भगवद्गीतोक्त बुद्धियोग 2 निष्काम कर्मयोग और 3 ईश्वर प्राणिधान या आत्म समर्पण अथवा भक्ति भाव।
लेकिन तीनों मार्गों का मुख्य आधार तो यम अर्थात धर्म ही हैं। जिसके न्यूनतम सर्वमान्य यम पतञ्जली योग दर्शनोक्त पञ्च यम ही हैं और तीनों मार्गों के सर्वमान्य न्यूनतम नियम पतञ्जली योग दर्शनोक्त पञ्च नियम ही हैं। आगे धर्मशास्त्रोंक्त सभी धर्मलक्षण इन्ही यम नियमों में समाहित हैं, यह प्रमाणित किया जाएगा।
तीनों प्रमुख मार्गों - पन्थों के बहुत से सम्प्रदाय हैं। यथा ज्ञान मार्ग का अभेद वैदिक दर्शन, अद्वैत वेदान्त दर्शन, त्रेत दर्शश, ब्राह्मण ग्रन्थोंक्त कर्मकाण्ड आधारित पूर्व मीमांसा दर्शन, तत्त्वमीमांसा दर्शन (जिसके मुख्य दो भाग सांख्य कारिकाएँ और कपिल सांख्य दर्शन हैं), अष्टाङ्ग योग दर्शन (जिसके मुख्य दो भाग राजयोग और निष्काम कर्म योग हैं), तर्क शास्त्र (जिसका मुख्य भाग गोतम न्याय दर्शन है), कणाद का वैशेषिक दर्शन।
जबकि वेदों को प्रमाण न मानने वाले पन्थो --बौद्ध सर्वास्तिवाद , जैन अनेकान्तवाद, महायान बौद्ध नागार्जुन का शुन्यवाद, मैत्रेयनाथ का योगाचार या विज्ञानवाद, त्रिक दर्शन, पाञ्चरात्र मत, पाशुपत मत, शाक्त मत,कौल मत, कापालिक दर्शन, नास्तिक मत आदि के भी अपने - अपने नैतिक नियम अवश्य है। लेकिन उनमें धर्म तत्व की प्रधानता नहीं है। या एक-दो यम को ही धर्म मानते हैं।

इब्राहीम और सबाइन पन्थ।

वेद मन्त्रों को ब्रह्म कहते हैं। इसलिए वैदिक धर्म को ब्राह्म धर्म कहा जाता है।
इस ब्राह्म धर्म से विमुख होने वाला व्यक्ति अब्राहम हुआ। उसके पहले देवासुर, मानव, यक्ष- गन्धर्व सभी वेदों को ही धर्म शास्त्र मानते थे। सभी वैदिक धर्मावलम्बी ही थे।
यह्व - यहोवा ने पहली बार अब्राहम को परिवर्तित कर उसका खतना करवाया और उसे वैदिक धर्म से प्रथक किया। और यहोवा ने उसकी आस्था की परीक्षा लेने के लिए उससे उसकी दासी के पुत्र इस्माइल का वध कर उसका बलिदान करवाने तक स्वीकार कर लेने पर उसे दृढ़ विश्वासी मान कर अपने विचारों का प्रचारक दूत माना।
अब्राहम ने अपने सभी कुटुम्बियों को अपने इष्टदेव यहोवा के मत में परिवर्तित कर नये पन्थ सबाइन पन्थ की स्थापना की।

मंगलवार, 2 जुलाई 2024

मुस्लिमों के अनुयाई हिन्दू।

रा.स्व.से. संघ प्रशिक्षित राजीव दीक्षित, पुष्पेन्द्र कुलश्रेष्ठ, कैप्टन बत्रा के प्रवचनों से प्रभावित होकर दास जनों (हिन्दुओं) ने मुस्लिमों से सीख लेकर सत्य बोलने के आरोप में शंकराचार्य स्वामी श्री स्वरूपानन्द सरस्वती को - क साई बाबा विरोध प्रकरण में हाईकोर्ट से ,शंकराचार्य स्वामी श्री निश्चलानन्द सरस्वती को - अधुरे राम मन्दिर की प्राण प्रतिष्ठा विरोध प्रकरण में मोदी भक्तों से और शिवपुराण वाचक टोटकाचार्य प्रदीप मिश्रा को - राधा बरसाना की निवासी नहीं थी कथन, और राधा का विवाह किसी अनन्य घोष के साथ हुआ था कथन के प्रकरण में बरसाना में ढोंगी बाबाओं और पण्डे- पुरोहितों का दण्ड भोगने को विवश कर दिया।