शनिवार, 21 जनवरी 2023

गण्डमूल नक्षत्र

नक्षत्रीय गणना निरयन मेषादि बिन्दु से आरम्भ होती है। सुर्य के केन्द्र से देखने पर (वर्तमान में 13/ 14 अप्रैल) जब भूमि चित्रा तारे की सीध में रहे अर्थात सुर्य , भूमि और चित्रा नक्षत्र का योगतारा चित्रा तारा एक सीध में हो उस समय निरयन मेष संक्रान्ति होती है।

निरयन मेषादि बिन्दू को 00°00'00" माना जाता है, यही बिन्दू 360° भी है।अर्थात निरयन मेषादि बिन्दु आकाश में नक्षत्र मण्डल का आरम्भ और अन्त है। तथा चित्रा तारा मध्य बिन्दु है। तदनुसार सिंह राशि के आरम्भ बिन्दु ,00°00'00" को 120° तथा धनु राशि के आरम्भ बिन्दु ,00°00'00" को 240° कहते हैं।

00° यानि 360°, 120° और 240 ° और फिर 360° मिलकर एक त्रिभुज यानि त्रिकोण बनाते हैं।

फलित ज्योतिष में ये अतिशुभ दृष्टियोग माना जाता है।भाव स्पष्ट में इन बिन्दुओं पर यानि त्रिकोण में स्थित ग्रह अति शुभ माने जाते हैं। किन्तु जन्म समय में भचक्र / नक्षत्रमण्डल / राशि चक्र में इन बिन्दुओं पर स्थित चन्द्रमा को को अत्यन्त अशुभ घोषित किया गया। मूलतः जब चन्द्रमा इन बिन्दुओं पर हो तो इस समय जन्मा बालक का जीवन क्रान्तिकारी या संघर्षमय माना जाता है।

निरयन मतानुसार मीन राशि का अन्तिम नक्षत्र रेवती और मेष राशि का आरम्भिक नक्षत्र अश्विनी तथा कर्क राशि का अन्तिम नक्षत्र आश्लेषा और सिंह राशि का प्रथम नक्षत्र मघा एवम् वृश्चिक राशि का अन्तिम नक्षत्र ज्यैष्ठा और धनु राशि का प्रथम नक्षत्र मूल ये दोनो संधि नक्षत्र गण्डमूल नक्षत्र कहलाते हैं।

इनमें भी रेवती का अन्तिम चरण और अश्विनी का प्रथम चरण तथा आश्लेषा के अन्तिम तीन चरण तथा मघा का प्रथम दो चरण एवम् ज्यैष्ठा पुरा (चारों चरण) तथा मूल के प्रथम तीन चरण हानिकारक माने गये हैं। शेष हानिकारक नही है। यहाँ तक की मूल अन्तिम चरण (यानि चौथा चरण) भी शान्ति से शुभ होना माना गया है।

धर्मशास्त्र और संहिता ज्योतिष के नियम बतलाये हैं। शास्त्र भेद से फलों में किञ्चित भिन्नता बतलाई जाती है तथा अनुभव से भी फलों की पुष्टि नही देखी जाती। इसलिये फल नही बतलाये हैं।

गुरुवार, 12 जनवरी 2023

होरा शास्त्र के जातक स्कन्द।

होरा शास्त्र के जातक स्कन्द के फलित ज्योतिष का सबसे महत्वपूर्ण भाग द्वादश भावों का कारकत्व है।
द्वितीय भाग राशियों और नक्षत्रों का स्वभाव।
तृतीय भाग ग्रहों का स्वभाव।
चतुर्थ भाग राशियों और नक्षत्रों में ग्रहों की स्थिति से दर्शित फल
पञ्चम भाग जन्म समय में जन्मस्थान पर भारतीय फलित ज्योतिष में भू केन्द्र से  क्रान्तिवृत में बारह कोणों पर स्थित नाक्षत्रीय स्थिति अर्थात भाव मध्य स्पष्ट और यूरोपीय फलित ज्योतिष में भू पृष्ठ से विषुव वृत में बारह कोणों पर स्थित सायन राशियों की अंशात्मक स्थिति अर्थात भाव स्पष्ट से ग्रहों से दर्शित फल।
षष्ट भाग ग्रहों में परस्पर अंशात्मक दूरी (दृष्टि योग) से दर्शित फल। यूरोपीय फलित ज्योतिष में इसका महत्व सर्वाधिक है।
सप्तम भाग में भारतीय फलित ज्योतिष में ग्रहों और भावों के षड्बल, षोडश वर्ग, और जेमिनीय पद्यति से बलाबल
अष्टम भाग विभिन्न दशाओं में लागू होनें वाली महादशा, अन्तर्दशा, प्रत्यन्तर दशा, सुक्ष्म दशा और प्राण दशा और इन दशाओं से सम्बन्धित ग्रहों के उपर दर्शाये अनुसार ही गोचर फल, और गोचर में बलाबल जानने हेतु अष्टक वर्ग और यूरोपीय फलित ज्योतिष में गोचर में ग्रहों और भावों में और सभी ग्रहों में परस्पर अंशात्मक दूरी से बने शुभाशुभ योग के अनुसार गोचर देखकर फल कथन करना, समय निर्धारित करने की पद्यति है।