दुर्गा सप्तशती प्रथमोऽध्याय श्लोक ५४ में जगतपति विष्णु की योगनिद्रा महामाया के प्रभाव को संसार की स्थिति का कारण कहा है।
श्लोक ५५ और ५६ में हरेष्चैशा महामाया को जगत का सम्मोहित कर्ता कहा है जो ज्ञानियों के भी चित्त को बल पूर्वक हरण कर मोहित कर देती है।
श्लोक ५६ में महामाया को ही सृष्टि सृजनकर्ता कहा है।
श्लोक ५७-५८ में संसार बन्धन का का हेतु और प्रसन्न होनें पर मुक्ति का वरदान देने वाली और मुक्तेर्हेतुभूता पराविद्या कहा है।
६४-६५ में उन्हें नित्य, जगन्मुर्ति, और सर्वमिदम् ततम् कहा है। उन्हे ही देवताओं के कार्यसिद्धि के लिए बहुदा उत्पन्न होनें वाली कहा है।
ये महामाया योगनिद्रा ही मूल देवी हैं। दुर्गा सप्तशती प्रथमोऽध्याय श्लोक ८९ एवम् ९० के अनुसार जिनका प्रथम अवतरण में मधुकेटभ के संहार हेतु हिरण्यगर्भ ब्रह्मा द्वारा जिनकी स्तुति करने पर जो श्रीहरि के देहकोश से प्रकट हो कर योगनिद्रा दशभुजा महाकाली के रूप में प्रकट हुई। और श्री हरि नें योगनिद्रा से जागकर मधुकेटभ का वध कर हिरण्यगर्भ ब्रह्मा जी का संकट दूर किया। ये महाकाली उत्तर चरित्र की ५/८८ कालिका (पार्वती) और ७/६, ७/१६ एवम् ७/२३ काली (चामुण्डा) से भिन्न हैं।
जिनका द्वितीय अवतरण का वर्णन दुर्गा सप्तशती मध्यम चरित्र के रूप में द्वितियोऽध्याय श्लोक ९ में उल्लेखित महिषासुर संहार हेतु श्रीहरि के मुख से और देवताओं के शरीर से निकले तेज के एकीकृत होनें पर नारी के स्वरूप में प्रकट महालक्ष्मी अवतार के नाम से द्वितियोऽध्याय श्लोक १३ में किया है। इन्हीं ने महिषासुर का वध किया था।
उन्ही का तीसरा अवतार दुर्गासप्तशती उत्तर चरित्र में पञ्चमोऽध्याय श्लोक ८७ में उल्लेखित पार्वती के शरीर से कौशिकी के रूप में हुआ।
उत्तर चरित्र दुर्गा सप्तशती पञ्चमोनध्याय से त्रयोदशोऽध्याय तक में देवताओं की स्तुति करने पर शुम्भ निशुम्भ दैत्यों के संहार करने हेतु उमा पार्वती के शरीर कोश से कौशिकी स्वरूप में महासरस्वती अवतार धारण करनें का वर्णन है। शुम्भ निशुम्भ वध में इन्ही कौशिकी देवी की सहायतार्थ प्रकट हुई क नौदुर्गाओं का उल्लेख है दुर्गासप्तशती पञ्चमोऽध्याय से त्रयोदशोऽध्याय तक है।
पार्वती का उल्लेख दुर्गासप्तशती पञ्चमोऽध्याय श्लोक ८५ में है।
दुर्गासप्तशती पञ्चमोऽध्याय श्लोक ८८ के अनुसार पार्वती के शरीर कोष से कोशिकी के प्रकट होनें से पार्वती जी की देह काली पड़ गई।तब उन्ही का ही नया नाम/ रूप हिमालय में विचरण करने वाली कालिका हो गया। ये कालिका पार्वती ही हैं और प्रथम चरित्र १/८९-९० में पूर्व कथित महाकाली से भिन्न है और आगे उत्तर चरित्र ७/६, ७/१६ एवम् ७/२३ में वर्णित काली (चामुण्डा) से भी भिन्न हैं।
पार्वती के शरीर कोष से कोशिकी के प्रकटीकरण का उल्लेख दुर्गासप्तशती पञ्चमोऽध्याय श्लोक ८७ में है।
देवताओं के बाद कोशिकी को सर्वप्रथम चण्डमुण्ड ने देखा था। दुर्गासप्तशती पञ्चमोऽध्याय श्लोक ८९)
दुर्गासप्तशती अष्मोटमोऽध्याय श्लोक २२ के अनुसार कौशिकी को चण्डी कहा है
दुर्गासप्तशती अष्मोटमोऽध्याय श्लोक २९ में कौशिकी को ही कात्यायनी भी कहा है।
दुर्गासप्तशती सप्तम और अष्टमोऽध्याय के अनुसार वास्तविक नौदुर्गाओं का वर्णन --- ये देवताओं और अवतारों की शक्तियाँ है जिननें शुम्भ निशुम्भ युद्ध में कौशिकी की सहायता की। इनके नाम देव्याः कवच में भी आये हैं। दुर्गा सप्तशती अध्याय/ श्लोक संख्या और देव्याकवच श्लोक संख्या दी जा रही है।
१ काली - दुर्गासप्तशती सप्तमोऽध्याय श्लोक ६ तथा ७/१६ एवम् ७/२३ में कौशिकी के क्रोध के कारण उनका रङ्ग काला पड़ गया, भौएँ टेड़ी हो गई। उनकी भृकुटी से काली उत्पन्न हुई। ये "काली देवी देवी मूलतः महाभारत शान्ति पर्व/ मौक्ष पर्व/ अध्याय २८३ से २८४ तक दक्षयज्ञ का भङ्ग और उनके क्रोध से ज्वर की उत्पत्ति तथा उसके विविध रूप के अन्तर्गत अध्याय २८४ श्लोक २९,३० और विशेषकर ३१ में उल्लेखित भद्रकाली देवी ही हैं। ये काली देवी प्रथम चरित्र १/८९ - ९० की महाकाली अवतार और उत्तर चरित्र ५/८८ की कालिका (पार्वती) से भिन्न हैं।
चण्ड मुण्ड को मारकर उनके शिर कोशिकी को भेट करनें पर कोशिकी ने काली का ही नाम चामुण्डा रखा दुर्गासप्तशती सप्तमोऽध्याय श्लोक २७। ये ही चामुण्डा देव्य कवच श्लोक ९ में और २० में है। श्लोक ४ की इन्हें ही कालरात्रि भी मान सकते हैं।
२ ब्राह्मी - दुर्गा सप्तशती अष्टमोऽध्याय श्लोक१५ के अनुसार शुम्भ निशुम्भ वध में कोशिकी की सहायतार्थ हिरण्यगर्भ ब्रह्मा की शक्ति ब्राह्मी आई। इसी का उल्लेख देव्य कवच श्लोक ११ में है। और १९ में ब्रह्माणी आया है। श्लोक ३ की ब्रह्मचारिणी भी मान सकते हैं।
३ माहेश्वरी - दुर्गा सप्तशती अष्टमोऽध्याय श्लोक१६ शंकर जी की शक्ति उमा माहेश्वरी स्वरूप में आई। देव्य कवच श्लोक१० में और ईश्वरी श्लोक ११ में है। श्लोक ३ की शैलपुत्री भी मान सकते हैं। श्लोक ४ की स्कन्द माता भी मानी जा सकती है।
४ कौमारी - दुर्गा सप्तशती अष्टमोऽध्याय श्लोक१७। कुमार कार्तिकेय की शक्ति देवसेना ही कौमारी के स्वरूप में आई।
देव्य कवच श्लोक १० और १८ ।
५ वैष्णवी - दुर्गा सप्तशती अष्टमोऽध्याय श्लोक १८। श्रीहरि की शक्ति वैष्णवी स्वरूप में आई।
देव्य कवच श्लोक ९ और १९ में तथा लक्ष्मी नाम श्लोक १० ।
६ वाराही - दुर्गा सप्तशती अष्टमोऽध्याय श्लोक १९। वराह अवतार की शक्ति वाराही स्वरूप में आई। देव्य कवच श्लोक ९ और १८ में है।
७ नारसिंही - दुर्गा सप्तशती अष्टमोऽध्याय श्लोक २०। नृसिंह अवतार की शक्ति नारसिंही स्वरूप में आई। देव्याः कवच में यह नाम नही है।
८ ऐन्द्री - दुर्गा सप्तशती अष्टमोऽध्याय श्लोक २१। इन्द्र की शक्ति शचि ऐन्द्री स्वरूप में आई।
देव्याः कवच श्लोक ९ और १७ ।
९ चण्डिका शक्ति - दुर्गा सप्तशती अष्टमोऽध्याय श्लोक २३ के अनुसार कोशिकी को रोष उत्पन्न होनें पर उनकी देह से ही अनेक गिदड़ियों के समान आवाज करने वाली अत्यन्त भयानक स्वरूप में चण्डिका शक्ति प्रकट हुई। उनने दूत बनाकर शुम्भ निशुम्भ देत्य के पास शंकरजी को दूत बनाकर भेजा। इसलिए शिवदूती कहलाती है।दुर्गा सप्तशती अष्टमोऽध्याय २८।
(अर्थात चण्डिका शक्ति को ही शिवदुती भी कहा है ८/२८।)। यह नाम देव्याः कवच में नही है।